इस लेख में जानेंगें (Nephrotic syndrome hone ka karan aur lakshan in hindi) नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम होने का कारण और लक्षण।
रोग परिचय
यह वृक्क / गुर्दे का एक विशेष प्रकार का रोग है जिसमें प्रोटीन वृक्क (किडनी) से छनकर मूत्र में आने लगता है। मूत्र मार्ग से अत्यधिक प्रोटीन निकल जाने से शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाती है तथा इस कमी के कारण रोगी के पूरे शरीर में पानी का रूकाव हो जाता है जिसके फलस्वरूप शरीर में सूजन आ जाती है।
जो आंखों के नीचे, पेट पर तथा पैरो पर अधिक होता है। बच्चों में इस प्रकार के नेफ्रोटिक रोग की खास किस्म ‘मिनिमल चेन्ज डिसीज / रोग (Minimal Change Disease) देखा जाता है। अधिक मात्रा में प्रोटीन का मूत्र के माध्यम से बाहर निकलना, रक्त में प्रोटीन की मात्रा कम हो जाना एवं शरीर पर सूजन आ जाने को ‘नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम’ के नाम से जाना जाता है।
नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम रोग के प्रमुख कारण
गुर्दे / वृक्क में संक्रमण अथवा किसी अन्य कारण से वह चोट ग्रस्त हो जाये तो प्रोटीन को वह मूत्र से अलग नहीं कर पाता है तथा इसकी मात्रा मूत्र में बढ़ती जाती है। परिणाम स्वरूप रक्त में प्रोटीन की कमी हो जाती है। इसके अतिरिक्त इस रोग का पूर्ण रूप से कारण अब तक अस्पष्ट है। विद्वानों द्वारा नीचे लिखे कारण सुझाये / बताये गये हैं–
• स्तवकवृक्कशोथ (Glomerulonephritis)
• मलेरिया
• सिफलिस
• कुष्ठ रोग
• श्लेष्म शोफ
• बैक्टीरियल एण्डोकार्डाइटिस
• औषधियाँ (कुछ किस्म की औषधियों के कुप्रभाव (Side effect) से)
• एलर्जी
• कुछ किस्म के वाइरस संक्रमण
• अधिकांशता बच्चों में इस रोग के कारण का पता नहीं चल पाता। (इस रोग का निदान मूत्र व रक्त की जांच से किया जाता है)
नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम रोग के प्रमुख लक्षण
इस रोग में रोगी के चेहरे, पैर व पैर के तलवे (सोल) आदि पर सूजन आ जाती है। जिसे अंगूठे से दबाकर छोड़ा जाये तो वहाँ गड्ढा पड़ जाता है। कभी – कभी सूजन इतनी बढ़ जाती है कि रोगी का पूरा शरीर फूल जाता है।
यह सूजन प्राय: सुबह को सोकर उठने पर अधिक मालूम पड़ती है। रोगी फूला – फूला पीला और कमजोर दिखायी देता है। मूत्र की मात्रा कम हो जाती है। मूत्र में फेन (झाग) की मात्रा अधिक दिखायी देती है। कभी – कभी रक्त चाप भी बढ़ा हुआ मिलता है। प्रोटीन की कमी से शरीर में संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है। नाखूनों पर चौड़ाई में बैंड से पड़ जाते हैं।
बच्चों को बार – बार सर्दी जुकाम हो जाता है। इन बच्चों में निमोनिया, पेरिटोनाइटिस, दिमाग की झिल्ली में सूजन भी देखने को मिलती है। रोग अधिक समय तक रहने पर बच्चे की विकास वृद्धि रूक जाता है। कभी – कभी वृक्क शिरा में रक्त का थक्का (क्लोट) बनने के कारण मूत्र में खून आने लगता है, नीचे पेडू (तलपेट) में दर्द तथा मूत्र में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।
नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम रोग की पहचान / निदान (Diagnosis)
• मूत्र की जांच में मूत्र में प्रोटीन आना विशेष रूप से एल्ब्यूमिन 3 ग्राम० प्रतिदिन से अधिक आना।
• प्रोटीन का अधिक मात्रा में मिलना।
• रक्त कणिकाओं की उपस्थिति।
• सीरम एल्ब्यूमिन 2.5 ग्राम / 100 मि० ली० से कम।
• मूत्र में लिपिड्स का पाया जाना।
रक्त में–
• ESR बढ़ा हुआ मिलता है।
• कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक होना।
• सारे शरीर में सूजन तथा निस्सरण (इन्फ्यूजन) रूप में होते हैं।
विशेष
अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि लगभग 90% बच्चों में यह रोग प्रारम्भ होने के 3-4 वर्ष की भीतर अथवा रोगी के 7 से 10 वर्ष की आयु तक पहुंचते – पहुंचते समाप्त हो जाता है।
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें। नेचुरल वे क्योर इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है।
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