Tumour kitne prakar ke hote hain in hindi | गिल्टियाँ कितने प्रकार के होते हैं, जानें इनका कारण और लक्षण
पर्यायवाची: अर्बुद, गांठें, रसूलियां, ग्रन्थिल अर्बुद (Glandular Tumours)
रोग परिचय, कारण व लक्षण
गिल्टियां या गांठें उभार के रूप में चर्म और मांस के मध्य (बीच) में पाई जाती है। यदि शरीर की प्राकृतिक ग्रन्थियाँ बढ़ जायें तो उनको ‘एन्लार्ज्ड ग्लैंड’ कहते हैं। परन्तु यदि किसी रोग के कारण अप्राकृतिक रूप से गिल्टियाँ उत्पन्न हो जाये तो उनको ‘ग्रैण्डमूलर ट्यूमर’ कहते हैं। इन्हें ‘ग्रन्थिल अर्बुद’ भी कहते हैं।
प्रकार- इन गिल्टियों के बहुत से प्रकार तो स्वयं एक रोग का स्थान रखते हैं फिर भी इनमें से कुछ मुख्य प्रकारों का वर्णन हम नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं-
(A) कण्ठमाला (Scrofula)- यह एक प्रकार के छोटे-छोटे उभार हैं जो प्रायः नरम मांस (यथा-गर्दन और बगल) में निकलते हैं। यह प्रायः एक ही झिल्ली में कई- कई होते हैं, परन्तु कभी-कभी रसूली के भांति प्रत्येक की झिल्ली अलग-अलग होती है। इसका कारण गाढ़ा बलगम (कफ या श्लेष्मा) पदार्थ होता है। इनमें बहुत शीघ्र पीप/ मवाद (Pus) पड़ जाती है और ये फूट जाती है। नवीनतम अनुसन्धानों के अनुसार यह रोग-क्षय के संक्रमण (Tuberculosis) से उत्पन्न होता है।
(B) कैन्सर या कार्सिनोमा (Cancer/Carcinoma)- यह एक दूषित प्रकार की रसूली अथवा शोथ है जो शरीर के किसी भी स्थान पर उत्पन्न हो सकती है। यह गोलाकार, बैंगनी काले रंग की होती है तथा क्रमशः बढ़ती रहती है और जैसे-जैसे बढ़ती जाती है वैसे-वैसे इसमें हरी व लाल कोशिकायें केकड़े के पैर की सदृश निकल आती है।
जब यह फूट जाती है तो घाव/जख्म का रंग बैंगनी-काला दिखाई देता है और इसके किनारे मोटे हो जाते हैं तथा इनमें से दुर्गन्ध आने लगती है और पीले रंग का दुर्गन्धित पानी (स्राव) बहने लगता है। रोगी को सख्त जलन और टीस (पीड़ा) होती है। सुईयां चुभती हुई प्रतीत होती है। इसका कारण ‘कफ-विकार’ होता है। परन्तु जो कैन्सर नहीं फूटता है वह बलगम और पित्त के जल जाने से उत्पन्न होता है।
(C) ग्लैण्डर्ज (Glanders)- इस रोग में चर्म (Skin) नीचे विभिन्न स्थानों पर गांठें छोटे लाल दानें निकल आते हैं जो अतिशीघ्र छाले बन जाते हैं और उनमें घाव/जख्म हो जाते हैं जिनमें रक्तयुक्त पीप/मवाद निकलती है। चर्म के नीचे जो गांठ उत्पन्न हो जाती है। वे पहले सख्त और कष्टदायक होती हैं बाद में उनमें पीप पड़ जाती है और वे फूट जाती हैं।
यदि रोग ‘तीव्र (एक्यूट) होता है तो रोगी को उसके साथ ज्वर, बेचैनी, जोड़ों, (ज्वाइंट) में दर्द और भूख की कमी आदि उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं परन्तु रोग ‘जीर्ण’ (क्रोनिक) होने पर ये कष्ट नहीं होते हैं। इस रोग का कारण एक विशेष प्रकार के कीटाणु होते हैं जिनको ‘बी-मलाई’ (B-malai) कहा जाता है। ये कीटाणु घोड़ों, गधे व खच्चरों के शरीर से मनुष्यों के शरीर में आकर इस रोग को उत्पन्न कर देते हैं।
(D) बद, गिल्टी, ककराली, कछराली, ब्यूवो जांघ और बगल की लिम्फैटिक ग्लैण्ड्स (ग्रन्थियों) के शोथ युक्त हो जाने और पक जाने को ‘बद’ आदि नामों से जाना जाता है।
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