गर्भावस्था में उल्टी रोकने का उपाय

गर्भधारण/स्थापित होने के आरम्भिक महीनों में स्त्री को मुख्यतः दिन में प्रातः समय कई बार वमन/उल्टियाँ आती हैं।

ये प्राय: गर्भ के 3-4 माह तक रहती हैं किन्तु किसी-किसी रोगिणी में सम्पूर्ण गर्भकाल (नौ माह) तक रहती हैं।

जिसके फलस्वरूप रोगिणी कुछ भी खा-पी नहीं पाती है। अतः परिणाम स्वरूप रोगिणी शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से दुर्बल हो जाती है।

रोग के प्रकार (Types of Disease)

गर्भकाल के समय तथा उसकी गंभीरता को दृष्टिगत रखते हुए यह रोग नीचे लिखे दो प्रकार का होता है-

1. साधारण उल्टियाँ (Simple Vomiting of Pregnancy) Morning Sickness. 2. Severe Type or Hyper Emesis Gravidarum.

रोग के मुख्य कारण

चिकित्सा विज्ञान में कोई स्पष्ट कारण तो ज्ञात नहीं है किन्तु फिर भी नीचे लिखे कारणों की संभावनायें व्यक्त की जाती हैं-

• विषरक्तता (टॉक्सीमिया) । • कार्बोहाइड्रेट की कमी। • अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों में असन्तुलन। • विक्षिप्तवाद (Neurotic Theory) कोई न कोई मनोविकार उपस्थित होने से।

रोग के मुख्य लक्षण (साधारण वमन/सिम्पल वूमीटिंग)

• यह गर्भकाल के प्रारम्भिक 3-4 महीनों में होती है। इस कारण इसे 'गर्भ ठहरने का लक्षण' भी माना जाता है।

• गर्भधारण होने के 6 सप्ताह से लेकर 12-16 सप्ताह तक स्त्री को उल्टियाँ आती है। • प्रातः समय उठने पर जी मिचलाने लगना तथा वमन होना।

• रोगिणी का कुछ भी खाने-पीने की इच्छा न होना। • शरीर निढाल सा रहना तथा नींद अधिक आना। • रोगिणी को प्राय: सुबह खाली पेट/निहार मुँह होने वाली वमन/उल्टी में पित्त युक्त पीला-हरा सा पानी निकलता है

जिससे मुख का स्वाद कड़वा होने के साथ ही साथ दिन के अन्य समय में खाया-पिया उदरस्थ भोज्य पदार्थ भी वमन में निकल जाता है।

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