पर्यायवाची– (Gingivitis) दन्तमूलशोथ, दन्त मांस शोथ, अल्सरेटिव।
रोग परिचय
इस रोग से पीड़ित रोगी के मसूढ़ों में शोथ हो जाती है। कभी – कभी मवाद भी पड़ जाती है। दांतों में तीव्र पीड़ा होती है। यह पायरिया रोग की प्रथमावस्था है।
भोजन पदार्थों के अंश दांत के आसपास दन्त मांस पर लगे रहने से और विदग्ध हो जायें तो वहाँ पूय जीवाणुओं (Streptococcus Viridans) का संक्रमण हो जाता है, जिससे पहले तो दन्त मांस शोथ (जिंजीवाइटिस) का रोग हो जाता है यानि दन्त मांस लाल और कुछ फूला हुआ दिखता है।
तदुपरान्त इनके विष के दुष्प्रभाव से दांत की आवरणकला (Periodontal Membrane) के ऊपर के भाग में शोथ और उसके बाद पूय स्राव की प्रक्रिया आरम्भ होकर नीचे दन्तमूल की ओर प्रसरण करने लगती है।
इस प्रकार दांत तथा दन्त गुहा के बीच की आवरणकला के खाये जाने से वहाँ पीरियोडोंटल पॉकेट (Periodontal Pocket) पैदा होता है। दन्त मांस में फाइब्रोसिस (Fibrosis) होकर वह मोटा हो जाता है।
दन्तमूलशोथ रोग का मुख्य कारण
• मुख गुहा में भलीप्रकार सफाई का अभाव।
• पूय जीवाणुओं (Streptococci Viridans) का संक्रमण।
दन्तमूलशोथ रोग के मुख्य लक्षण
• दन्त मांस की शोथावस्था में स्वल्पाघात से ही उनमें से रक्तस्राव होने लगना।
• दन्त मांस फूले हुए रक्तवर्ण तथा कुछ पीछे हटे हुए दीखना।
• दांत के आसपास के अवयव से पूयस्राव हो जाने पर लालस्राव, मुख वैरस्य, मुख दुर्गन्ध, गलशोथ (फैरिञ्जाईटिस) तथा आमाशय के शोथ के लक्षण होना।
• आमवातिक शूल (यथा मांसशूल (Fibrositis), लघुसन्धि शोथ (Rheumatoid Arthritis) तथा त्वक्शोथ (एक्जिमा Eczema) के लक्षण भी रोगी में हो सकते हैं।
• यदि रोग वृद्धि होती रहे (समुचित चिकित्सा के अभाव में) तो रोगी के दाँत हिलने लगते हैं।
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