रोग परिचय: तीव्र (एक्यूट Acute) अतिसार / डायरिया में रोगी के मल ( पाखाना ) की संख्या बहुत अधिक हो जाती है तथा यह बहुत पतला होता है ।

अस्तु बार - बार आने वाले पतले दस्तों को अतिसार / डायरिया कहते हैं । यह रोग अचानक होकर एक या दो दिन रहता है । इसमें एक दिन में तीन से अधिक बार रोगी को दस्त हो जाता है ।

यह रोग बच्चों में मृत्यु का एक मुख्य कारण है । यह रोग 5 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों को अधिक प्रभावित करके उनमें पानी की कमी / निर्जलीकरण ( डीहाइड्रेशन ) कर देता है ।

श्लैष्मिक अतिसार अथवा आमातिसार: ( Catarrnal Enteritis or Dyspeptic or Dietetic Diarrhoea ) अति मात्रा में ( भारी / गरिष्ठ ) , शीत , स्निग्ध गुण भोजन के सेवन करने से अग्नि के मन्द हो जाने के कारण

उत्पन्न हुए अतिसार को ' श्लैष्मिक अतिसार ' कहते हैं । इसमें मल चिकना , गाढ़ा , पानी में डूबने वाला , श्वेत वर्ण , श्लेष्म द्रव युक्त और दुर्गन्धित होता है ।

रोगी में भूख/ क्षुधा नाश, वमन, अरुचि, आलस्य, तन्द्रा एवं मन्दता आदि मन्दाग्रि परिचायक लक्षण होते हैं।

पित्तातिसार(Toxic Diarrhea): किसी उष्ण तीक्ष्ण गुण विषद्रव के क्षुद्रान्त्र में पहुँचने से उसकी श्लैष्मिक कला में तीव्र पैत्तिक शोथ होकर दुर्गन्ध युक्त पतले दस्त होने लग जाते हैं

, जिसकी अवस्था में रोगी में ज्वर , सन्ताप , पिपासा , मूर्च्छा , पाक आदि पित्त प्रकोपक परिचायक / सूचक लक्षण होते हैं उसे ' पित्तातिसार ' कहा जाता है ।

वातातिसार( Irritable Colon ): आन्त्रगत वायु के विक्षोभ से जो अतिसार अल्प- अल्प मात्रा में रोगी को बार - बार होता है उसको ' वातातिसार ' कहा जाता है

जिसकी चिकित्सा' प्रवाहिका' ( पेचिश/ डिसेन्ट्रीDysenteries ) के समान करने का विधान है । • भय , शोक आदि मानस भावों से उत्पन्न होने वाले अतिसार को ' मानस अतिसार ' कहा जाता है ।

अतिसार( डायरिया) के प्रमुख लक्षण नीचे लिखे हैं • अजीर्ण/ पाचन संस्थान में दोष। • गरिष्ठ, चिकने, सूखे, संयोग विरुद्ध ठण्डे पदार्थों का सेवन।

• दूषित जल और दूषित मद्य का अधिक मात्रा में सेवन। • आमाशयिक रसों का कम बनना अथवा नहीं बनना। • पाचन शक्ति से अधिक मात्रा में भोजन करना।

• यूरीमिया, अधिक अतिसक्रियाता( हायपरथायरोडिश्मHyperthyrodism ) तथा पूतिजीव रक्तता ( सेप्टिसीमिया Sepiteamia ) आदि । • आमाशय में कृमि, अर्श/ बवासीर, ग्रहणी तथा अजीर्ण रोग के फलस्वरूप।

• अधिक भय एवं शोक आदि के फलस्वरूप मानसिक भाव से। • तीव्र दस्त( एक्यूट डायरियाAccute diarrhoea ) संक्रमण के फलस्वरूप होता है ।

• संक्रमण रहित कारण- कोलीनर्जिक एजेण्ट्स, मैग्नीशियम सम्बन्धित एण्टासिड्म, ब्राड स्पेक्ट्रम एण्टीबायोटिक्स एवं जुलाव/ विरेचन वाली औषधियाँ आदि।

• अपच इस( अजीर्ण) इस रोग का मुख्य कारण माना जाता है। • आँतों में सूजन आने से जब वह अपना कार्य ठीक( प्राकृत रूप) से नहीं कर पाती है तब भी दस्त होते हैं।

• गर्मी के दिनों में ग्रीष्म ऋतु की गर्म हवा' लू' ( Heatstroke ) लग जाना । • सेवन की जाने वाली औषधि के अनुकूल न पड़ने से।

• ऋतु परिवर्तन, दूषित वायु तथा दूषित जल से। • कभी- कभी पहाड़ी स्थानों में प्रवास के दौरान' हिल डायरिया' होते भी देखा गया है।

• कोई अखाद्य पदार्थ खा लेना, आहार के साथ कोई मक्खी अथवा जीव जन्तु निगल लेना, आहार के साथ कोई विषाक्त तत्व पेट में पहुँच जाना।

• टायफायड ज्वर, आँतों की क्षय( T.B ) तथा विषू के रूप में। आगे जानने के लिए निचे दिए गये लिंक पर क्लिक करें