चन्द्रप्रभा वटी के फायदे | चन्द्रप्रभा वटी के नुकसान | चन्द्रप्रभा वटी सेवन विधि | chandraprabha vati uses in hindi | chandraprabha vati ke fayde

चन्द्रप्रभा वटी क्या है?

chandraprabha vati uses in hindi चन्द्रप्रभा वटी एक प्रकार की आयुर्वेदिक दवा है जो कि गोली के फॉर्म में होती है।

चन्द्रप्रभा वटी बनाने के लिए सामग्री:

कपूरकचरी, बच, नागरमोथा, चिरायता, गिलोय, देवदारु, हल्दी, अतीस, दारुहल्दी- पीपलामूल, चित्रकमूल-छाल, धनिया, बड़ी हर्रे, बहेड़ा, आँवला, चव्य, वायविडङ्ग, गज पीपल, छोटी पीपल, सोंठ, काली मिर्च, स्वर्ण माक्षिकभस्म, सज्जीखार, यवक्षार, सेंधानमक, साचरनमक, साँभर लवण, छोटी इलायची के बीज, कबाबचीनी, गोखरू और श्वेतचन्दन।

चन्द्रप्रभा वटी बनाने के लिए सामग्री मात्रा:

प्रत्येक 3-3 माशे, निशोथ, दन्तीमूल, तेजपात, दालचीनी, बड़ी इलायची, बंशलोचन— प्रत्येक 1-1 तोला, लौह भस्म 2 तोला, मिश्री 4 तोला, शुद्ध शिलाजीत और शुद्ध गूगल 8- 8 तोला लें। प्रथम गूगल को साफ करके लोहे के इमामदस्ते में कूटें, जब गूगल नरम हो जाय, तब उसमें शिलाजीत और भस्म तथा अन्य द्रव्यों का कपड़छन चूर्ण क्रमशः मिला तीन दिन गिलोय के स्वरस में मर्दन कर, 3-3 रत्ती की गोलियाँ बनाकर रख लें।

चन्द्रप्रभा वटी की मात्रा और सेवन विधि:

1-3 गोली सुबह-शाम धारोष्ण दूध, गुडूची क्वाथ, दारुहल्दी का रस, बिल्वपत्र-रस, गोखरू – क्वाथ या केवल मधु से दें।

चन्द्रप्रभा वटी के फायदे: chandraprabha vati ke fayde | chandraprabha vati uses in hindi

यह बटी मूत्रेन्द्रिय और वीर्य-विकारों के लिये सुप्रसिद्ध है। यह बल को बढ़ाती तथा शरीर का पोषण कर शरीर की कान्ति बढ़ाती है। प्रमेह और उनसे पैदा हुए उपद्रवों पर इसका धीरे- धीरे स्थायी प्रभाव होता है। सूजाक, आतशक आदि के कारण मूत्र और वीर्य में जो विकार पैदा होते हैं, उन्हें यह नष्ट कर देती है। 

टट्टी-पेशाब के साथ वीर्य का गिरना, बहुमूत्र, श्वेतप्रदर, वीर्य दोष, मूत्रकृच्छ्र, मूत्राघात, अश्मरी, भगन्दर, अण्डवृद्धि, पाण्डु, अर्श, कटिशूल, नेत्ररोग तथा स्त्री-पुरुष के जननेन्द्रिय के विकारों में चन्द्रप्रभा बटी से बहुत लाभ होता है। पेशाब में जाने वाला एल्ब्युमिन् इससे जल्दी बन्द हो जाता है। 

पेशाब की जलन, रुक-रुक कर देर में पेशाब होना, पेशाब में चीनी आना (मधुमेह), मूत्राशय की सूजन और लिंगेन्द्रिय की कमजोरी इससे ठीक हो जाती है। यह नवीन शुक्र-कीटों को उत्पन्न करती है। और रक्ताणुओं का शोधन तथा निर्माण करती है। थके हुए नौजवानों को इसका सेवन अवश्य करना चाहिए।

मूत्राशय में किसी प्रकार की विकृति होने से मूत्र दाहयुक्त होना, पेशाब का रंग लाल, पेडू में जलन, पेशाब में दुर्गन्ध अधिक हो, पेशाब में कभी-कभी शर्करा भी आने लगे, ऐसी हालत में चन्द्रप्रभा बटी बहुत उत्तम कार्य करती है, क्योंकि इसका प्रभाव मूत्राशय पर विशेष होने से वहाँ की विकृति दूर होकर पेशाब साफ तथा जलनरहित आने लगता है।

वृक्क (मूत्र-पिण्ड) की विकृति होने पर मूत्र की उत्पत्ति बहुत कम होती है, जिससे मूत्राघात-सम्बन्धी भयंकर रोग वातकुण्डलिका आदि उत्पन्न हो जाते हैं। मूत्र की उत्पत्ति कम होने या पेशाब कम होने पर समस्त शरीर में एक प्रकार का विष फैल कर अनेक तरह के उपद्रव उत्पन्न कर देता है। 

जब तक यह विष पेशाब के साथ निकलता रहता है, शरीर पर इसका बुरा प्रभाव नहीं होता, किन्तु शरीर में रुक जाने पर अनेक उपद्रव कर देता है। ऐसी दशा में चन्द्रप्रभा से काफी लाभ होता है। साथ में लोध्रासव या पुनर्नवा-सव आदि का भी प्रयोग करते हैं। चन्द्रप्रभा बटी का प्रभाव मूत्रपिण्ड पर होने की वजह से विकृति दूर हो जाती तथ मूत्रल होने के कारण यह पेशाब भी साफ और खुल कर लाती है।

पुराने सूजाक में भी इसका उपयोग किया जाता है। सूजाक पुराना होने पर जलन आदि तो नहीं होती, किन्तु मवाद थोड़ी मात्रा में आता रहता है। यदि इसका विष रस-रक्तादि धातुओं में प्रविष्ट हो उसके शरीर के ऊपरी भाग में प्रकट हो गया हो, यथा-शरीर में खुजली होना, छोटी-छोटी फुन्सियाँ हो जाना, लिंगेन्द्रिय पर चट्टे पड़ जाना आदि, तो ऐसी दशा में चन्द्रप्रभा बटी—चन्दनासव अथवा सारिवाद्यासव के साथ देने से बहुत अच्छा लाभ करती है। यह रस- रक्तादि-गत विषों को दूर कर धातुओं का शोधन करती तथा रक्त-शोधन कर उससे होने वाले उपद्रव को शांत करती है। इसके सेवन से पेशाब शीघ्र खुलकर होने लगता है।

यह गर्भाशय को भी शक्ति प्रदान कर उसकी विकृति को दूर करके शरीर निरोग बना देती है। अधिक मैथुन या जल्दी-जल्दी सन्तान होने अथवा सूजाक, उपदंश आदि रोगों से गर्भाशय कमजोर हो जाता है, जिससे स्त्री की कान्ति नष्ट हो जाती, शरीर दुर्बल और रक्तहीन हो जाता, भूख नहीं लगती, मन्दाग्नि एवं वातप्रकोप के कारण समूचे शरीर में दर्द होना, कष्ट के साथ मासिक धर्म होना, रजःस्राव कभी-कभी 10-12 रोज तक बराबर होते रहना आदि उपद्रव होने पर चन्द्रप्रभा अशोक घृत के साथ दें। फलघृत के साथ देने से भी लाभ होता है।

अधिक शुक्र क्षरण या रजःस्राव हो जाने से (स्त्री-पुरुष) दोनों की शारीरिक क्रान्ति नष्ट हो जाती है। शरीर कमजोर हो जाना, शरीर का रंग पीला पड़ जाना, मन्दाग्नि, थोड़े परिश्रम से हॉफना, आँखें नीचे धँस जाना, बद्धकोष्ठता, भूख खुलकर नहीं लगना आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे समय में चन्द्रप्रभा का उपयोग करने से रक्तादि धातुओं की पुष्टि होती है तथा वायु का भी शमन होता है।

स्वप्नदोष या अप्राकृतिक ढंग से छोटी आयु में वीर्य का दुरुपयोग करने से वातवाहिनी तथा शुक्रवाहिनी नाड़ियाँ कमजोर हो शुक्र धारण करने में असमर्थ हो जाती हैं। परिणाम यह होता है कि स्त्री-प्रसंग के प्रारम्भकाल में ही पुरुष का शुक्र निकल जाता है। अथवा स्वप्नदोष हो जाता है या किसी नवयुवती को देखने या उससे वार्तालाप करने मात्र से ही वीर्य निकल जाता है। ऐसी दशा में चन्द्रप्रभा बटी गुर्च के क्वाथ के साथ खाने से बहुत लाभ करती है।

वात-पैत्तिक प्रमेह में इसका अच्छा असर पड़ता है। वातप्रकोप के कारण बद्धकोष्ठ हो जाने पर मन्दाग्नि हो जाती है, फिर जीर्ण, अपच, भूख नहीं लगना, अन्न के प्रति अरुचि, कभी-कभी प्यास ज्यादे लगना, शरीर शक्तिहीन मालूम पड़ना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। इस अवस्था में चन्द्रप्रभा बटी के प्रयोग से प्रकुपित वायु शान्त होकर इससे हाने वाले उपद्रव भी शान्त हो जाते हैं तथा प्रमेह-विकार भी दूर हो जाते हैं।

चन्द्रप्रभा वटी के नुकसान: chandraprabha vati ke nuksan

चन्द्रप्रभा वटी गर्भवती महिला, इसी रोग की अन्य दवाओं के साथ सेवन करने से, जिनका हाल ही में पेट का सर्जरी हुआ हो, स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें। नेचुरल वे क्योर इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है।

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