रोग परिचय: मलद्वार/गुदाद्वार के भीतर अथवा बाहर रोगाक्रान्त रोगी का मस्सा (ट्यूमर) उत्पन्न हो जाने को अर्श अथवा (Piles) कहा जाता है। वास्तविकता तो यह है कि पाइल्स रक्त धमनियाँ होती हैं जिनका गुदाद्वार (Anus) से सम्बन्ध होता है। अस्तु बवासीर/अर्श रोग में रोगी के मलद्वार के भीतर अथवा बाहर छोटे-छोटे ट्यूमर अथवा अर्बुद सदृश दाने उत्पन्न हो जाते हैं। इन मस्सों के अन्दर छोटी-छोटी धमनियाँ रहती हैं। इन धमनियों में कुछ दिन तक रक्त जमता रहता है, जिससे वे प्रसारित होकर फूल जाती हैं। बवासीर/मस्सों से रोगी को जो रक्त गिरता है वह आर्टीरियल होता है तथा म्यूकस मेम्ब्रेन की आर्टरी से आता है।
यह रक्त एक बार में 4-5 औंस तक गिरता है। रोगी के मस्से दबाव पड़ने से फूलकर नीचे लटकने लगते हैं तथा अंगूर के सदृश मस्से बनकर गुदाद्वार से बाहर निकल आते हैं। अंगूर के सदृश यह मस्से एक-दूसरे से जुड़कर अंगूर के गुच्छों के रूप में उभर आते हैं। इन्हीं गुच्छों से रक्त बहने लगता है। कुछ रोगियों को रक्त नहीं भी बहता है। इनमें रोगी के अत्यनत तीव्र वेदना और जलन होती है जिससे रोगी का मल त्याग करना, उठना-बैठना, चलना-फिरना यहाँ तक लेटना तक दुश्वार हो जाता है। मलद्वार के अन्दर और बाहर नसों में तीव्र सूजन हो जाने या नसों के फूल जाने के कारण, रोगी को असहनीय कष्ट होता है ।
Bawasir (Piles) rog ke pramukh karan । बवासीर रोग के प्रमुख कारण:
• वंशानुगत (Hereditary) प्राय: ऐसा भी देखने को मिलता है कि एक ही परिवार के पारिवारिक सदस्यों में यह रोग अधिक देखने को मिलता है। यह भी हो सकता है कि जन्म से ही शिराओं (बेन्स Veins) की दीवारें कमजोर हो।
• जीर्ण/पुरानी कब्ज।
• गर्भावस्था में यह रोग स्त्रियों में देखने को मिलता है।
• निरन्तर बैठकर कार्य करने वाले लोगों को यह रोग अधिक होता है।
• लम्बे समय तक विरेचक/दस्तावर (पेट साफ करने वाली औषधियों के) सेवन से। पौरुष ग्रन्थि/प्रोस्टेट ग्लैण्ड के बढ़ने से ।
• रेक्टम के कर्सिनोमा में।
• शारीरिक संरचना के कारण।
• यूरेथ्रा (Urethra) में रूकावट होने पर अधिक शक्ति/जोर लगाकर मूत्र त्याग करने से।
• यकृत सिरोसिस (Liver Cirrhosis) के रोग से।
• अन्य किसी रोग के कारण मल त्याग करते समय अत्याधिक कांखना/कुंथना अथवा जोर लगाना।
• बबासीर (Piles) सम्बन्धी सिरो/नस के भीतर ओवेरियन या किसी ट्यूमर का दबाव।
• शराब, मांस, अण्डा, केकड़ा, प्याज, लहसुन, मिर्च, गर्ममसालों से युक्त शाक-सब्जियाँ-अथवा अन्य कोई खाद्य पदार्थों के अधिक खाने से तथा रात्रि जागरण आदि कारण भी इस रोग को उत्पन्न करते है।
• आयुर्वेद में इस रोग का मुख्य कारणों अग्नि मान्द्य और कब्ज माना जाता है। अग्नि मान्द्य और कब्ज का एक-दूसरे से पारस्परिक सम्बन्ध है। बासी सड़ा हुआ, गरिष्ठ (देर से पचने वाला) अधिक बारीक, मैदा युक्त, अधिक चिकनाई युक्त, ठण्डा तथा मिलावटी आहार के सेवन से जठराग्नि मन्द पड़ जाती है अर्थात् व्यक्ति अग्नि मान्द्य रोग से पीड़ित हो जाता है।
• संयोग-विरुद्ध खाद्यों को खाना-यथा-दूध के साथ प्याज, लहसुन, नमक, मांस-मछली आदि नहीं खाना चाहिए। अन्यथा इस रोग के हो जाने की पूरी सम्भवना रहती है।
• उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त-अत्याधिक मैथुन/समागम करना, मूत्र सम्बन्धी रोग, मूत्राशय में पत्थरी की शिकायत एवं अत्याधिक चाय, काफी आदि का सेवन भी इस रोग को उत्पत्ति कारकों में सम्मिलित है।
बवासीर (Piles) रोग के प्रकार | Bawasir rog ke prakar:
• बाहरी बवासीर (एक्सटर्नल पाइल्स- External Piles)
• आन्तरिक बवासीर (इण्टरनल पाइल्स Internal Piles)
• आन्तरिक-बाह्य (मिश्रित) बवासीर (इंट्रो एक्सटर्नल पाइल्स- Intro External Piles)
• बाह्य/बाहरी बवासीर त्वचा (Skin) के द्वारा ढके रहते हैं तथा आन्तरिक बवासीर (Piles) म्यूकस मेम्ब्रेन के नीचे रहते हैं। रोग के आरम्भ में रोगी को कोई कष्ट नहीं होता है वह अपना दैनिक कार्य सुगमतापूर्वक करता रहता है।
• आन्तरिक पाइल्स-अधिकांशता रोगियों में आन्तरिक और मिश्रित (इंट्रो एक्सटर्नल) पाइल्स साथ-साथ होते हैं। यही प्रकार सर्वाधिक देखने में आता है। इसमें आन्तरिक वेनस प्लेक्सस (शिराओं का गुच्छा) फूल कर गुदा की म्यूकस मेम्ब्रेन के साथ नीचे को लटक जाता है। यह प्राय: 35 से 50 वर्ष की आयु में अधिक मिलते हैं।
इस रोग के प्रमुख लक्षण नीचे लिखे हैं:
• मल द्वार में खुजली तथा खुजलाहट की सुरसुराहट होना।
• कभी-कभी (मस्सों) में प्रदाह और दर्द।
• सूजन तथा जलन।
• चलने फिरने में रोगी कष्ट।यह कष्ट रोगी को मल त्याग के समय अधिक होता है। कष्ट एक सप्ताह के अन्दर घट जाता है किन्तु कुछ समय के बाद रोगी की फिर वही स्थिति/दशा हो जाती है।
• इस प्रकार के अर्श/मस्सों से न खून/रक्त गिरता है, न पकता है तथा न ही घाव होता है। (इसी कारण इसे सामान्य भाषा में “बादी बवासीर” कहा जाता है) यह बाह्य बवासीर के लक्षण हैं।
• आन्तरिक बवासीर (Internal Piles) रक्तार्स (ब्लीडिंग पाइल्स Bleeding Piles) रोगी के मलद्वार के भीतर भारीपन व खुजली का होना।
• समय समय पर मस्सों में रक्तस्राव कभी-कभी रक्त की टोंटी चलती है।
• नवीन रोग में रोगी को तीव्र दर्द। मल त्याग के समय जब मस्से गुदा से बाहर निकल आते हैं तब रोगी को असहनीय पीड़ा। प्राय: रोगी को मल त्याग के समय पीड़ा होता है।
• निरन्तर अधिक दिन तक खून गिरते रहने से रोगी रक्ताल्पना से पीड़त होकर दुर्बल हो जाता है।
• रोगी कुछ दिन आरोग्य अनुभव करता है, रक्तस्राव की शिकायत नहीं रहती है किन्तु फिर पुनः अचानक किसी दिन खून गिरना प्रारम्भ हो जाता है।
• रोग जीर्ण पुराना होने पर केवल रक्तस्राव ही होता है कभी-कभी रोगी को अज्ञातावस्था में उकडूं बैठने से रक्तस्राव होकर पहने हुए कपड़े धोती/पाजामा आदि खराब हो जाते हैं।
• अर्श का रक्तस्त्राव प्राय: मल त्याग के पहले अथवा बाद में होता है, मल के साथ रक्तस्राव ही होता है। रक्त कभी-कभी बूंद-बूंद अलग-अलग गिरता है तथा कभी कठोर मल (पाखाना) के साथ (एक बगल में एक रेखा सी बनकर) निकलता है। गुदाद्वार में कोई भी चीज अंड़ी/फंसी है रोगी को ऐसा प्रतीत होता है। अर्श में रक्तस्त्राव होता है आरम्भ में अर्श शुष्क (Dry) रहते हैं किन्तु बाद में रक्त आने लगता है।
• रोगी मलावरोध/कब्ज से सदैव पीड़ित रहता है। उसको दस्त/पाखाना सदैव कड़े/कठोर आते हैं। दस्त के समय रक्त आता है। पेट साफ न होने से रोगी को भूख नहीं लगती है।
उपद्रव (complications)
• अधिक रक्तस्त्राव
• स्ट्रेंगुलेशन (विपाशन)
• थ्रोम्बोसिस (घनास्त्रता)
• गैंग्रीन (कोथ)
• फाइब्रेसिस (तंतुमम)
• अल्सरेशन
• खुपरेशन (मवाद का आना)
बवासीर (Piles) के लिए घरेलू नुस्खे | Home remedies for piles:
• अमरबेल का स्वरस 50 मिलीग्राम में काली मिर्च 5 नग का चूर्ण मिलाकर तथा भली प्रकार घोंटकर प्रतिदिन सुबह सेवन कराएं मात्र 3 दिन सेवन करने से ही खूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर में लाभ हो जाता है।
• छिलका सहित शुष्क निंबोली कूट पीसकर शुष्क चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। इसको प्रतिदिन दो चम्मच की मात्रा में बासी पानी के साथ सेवन करने से खूनी व बादी बवासीर में लाभ होता है।
• पिपली चूर्ण 4 रत्ती, भुना जीरा 1 ग्राम और थोड़ा-सा सेंधा नमक मठ्ठे में मिलाकर भोजनोपरांत (खाना खाने के बाद) सेवन करने से बवासीर रोग नष्ट हो जाता है।
• ग्वार के पत्तों का अर्क 25-25 मिली० की प्रति मात्रा में सेवन करने से खूनी व बादी बवासीर नष्ट हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु में मिश्री के अनुपान से, वर्षा ऋतु में काली मिर्च से तथा जाड़ों में फीका ही पीना चाहिए।
• लाल फिटकरी पानी में घिसकर गूदा में (मस्सों पर) लेप करने से मस्से नष्ट हो जाते हैं।
• छोटी मक्खी का शहद और गाय का घी समान मात्रा में मिलाकर बवासीर के मस्सों पर लगाते रहने से मात्र 2 से 3 सप्ताहों में मस्से सूख जाते हैं।
• फिटकरी 10 ग्राम को बारीक पीसकर गाय का मक्खन 20 ग्राम में मिलाकर गुदा में लगाने से बवासीर के मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
• काले तिल धोकर छिलके उतार कर सुरक्षित रख लें। यह तिल एक तोला की मात्रा में मक्खन या मिश्री में मिलाकर सेवन करने से खूनी बवासीर का कष्ट मिट जाता है। गर्भवती स्त्रियां भी सेवन कर सकती है।
घरेलू नुस्खे के फायदे:
घरेलू नुस्खे सबसे सुरक्षित और सबसे सस्ते होते हैं। इस नुस्खे की सबसे अच्छी बात यह है कि सारे सामग्री घर पर ही उपलब्ध होते हैं। बहुत ऐसे केस में बिना डॉक्टर के पास जाए भी समस्या घर पर ही ठीक हो जाती है।
सुझाव: ध्यान रहे कि जितने भी बताये गये नुस्खे हैं सबको एकसाथ प्रयोग नहीं करना है। अधिक लाभ के लिए किसी एक घरेलू नुस्खे के साथ बताये गये योगासन और संतुलित आहार का सेवन करें।
बवासीर (Piles) के लिए फल:
• अंजीर
• जामुन
• नींबू
• पपीता
बवासीर (Piles) के लिए योगासन:
• विपरीतकरणी
• मालासन
• बालासन
• पवनमुक्तासन
• सर्वांगासन
• अर्धमत्स्येन्द्रासन
जितने भी योगासन बताए गए हैं सब योग प्रशिक्षक के देखरेख में करें।
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें। नेचुरल वे क्योर इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है।
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