Kabj ka gharelu upay | कब्ज का घरेलू उपचार

भारत में कुल 22 प्रतिशत कब्ज रोगी है ये कब्ज का घरेलू उपाय (kabj ka gharelu upay) बहुत प्रभावी है। शीघ्र लाभ के लिए बताये गये विधि को अपनाये।

रोग परिचय: इस रोग से पीड़ित मनुष्य 2 से 3 दिनों तक मल विसर्जन हेतु नहीं जाता है। मल विसर्जन के लिए जाने पर मल (पखाना) कम मात्रा में सख्त/कठोर और सूखा आता है। कहने का तात्पर्य यह है कि रोगी को शौच (दस्त) साफ नहीं आता है तथा रोगी को लगता है कि उसका पेट साफ नहीं हुआ है।

यह एक बहुत ही आम-शारीरिक खराबी है जिससे रोगी को मानसिक चिन्ता रहती है तथा उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। प्राय: सामान्य मनुष्य एक दिन में 200 से 250 ग्राम तक की मात्रा में मल शरीर से विसर्जित करता है, किन्तु यह मात्रा उसके खाने-पीने पर अधिक निर्भर है।

इसी प्रकार प्राय: सामान्यतः एक मनुष्य प्रत्येक दिन 1 बार अथवा 2 बार मल विसर्जन करता है। कई लोग तो मल विसर्जन हेतु दिन में 3-4 बार तक जाते हैं और बहुत से लोग तो कई-कई दिन तक मल विसर्जन/मल त्याग को नहीं जाते हैं।

कब्ज का रोग होने पर रोगी कई घंटों तक शौच/दस्त त्याग हेतु बैठा रहता है परन्तु उसे बहुत कम मात्रा में सख्त/कठोर मल निकलता है। इससे रोगी और भी अधिक कुण्ठाग्रस्त हो जाता है तथा उसको आलस्य, सुस्ती, सिरदर्द, किसी भी काम को करने में मन नहीं लगना, मानसिक दबाव तथा चिड़चिड़ा स्वभाव आदि लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं।

 इस रोग के मुख्य कारण (Aetilogy) नीचे लिखे हैं: मुख्यतः यह रोग आँतों की गति कम (Peristalsis) होने से उत्पन्न होता है। यकृत/जिगर (लीवर Liver) की कार्यक्षमता कम होना भी इसके मुख्य कारणों में हैं इसके अतिरिक्त विद्युत चालित चक्की का चिकना, महीन,

बारीक आटा बिना छिलके की दाल, पालिश किये हुए चावल, चोकर रहित आटा की रोटियाँ, छिलका निकाल कर बनाई हुई हरी सब्जियाँ, रेशा रहित आहार का अत्यधिक उपयोग, पानी कम पीने की आदत, परिश्रम रहित अकर्मण्य जीवन यापन, मल त्याग के लिए तम्बाकू,

चाय या बीड़ी-सिगरेट सेवन करने की लत/आदत, बार-बार विरेचन/जुलाव लेकर मल त्याग करने की आदत, मलोत्सर्जन की हाजत को बलात रोके रहना, चिन्ता, भय, क्रोध और मानसिक विकार, लम्बे समय तक चलने वाले रोग, अत्यधिक परिश्रम तथा अपर्याप्त आहार, मैदा से निर्मित खाद्य पदार्थों को अधिकता खाना, भोजन में परिवर्तन, कम फाइबर युक्त भोजन खाना तथा पानी कम मात्रा में पीना।

गर्भावस्था, भारी (गरिष्ठ) पानी पीना, पानी में बदलाव, वृद्धावस्था में आँतें निर्बल/कमजोर हो जाना, मधुमेह, पोरफायरिया और मानिसक चिन्तन, बहुत सी औषधियाँ यथा कोडीन, ओपिएट्स, एण्टासिड, बेहोशी लाने वाली औषधियाँ,

गैंगिलयोन को ब्लाक करने की औषधियाँ, मल त्याग में अधिक दर्द होने पर, प्रोक्टाईटिस में रोगी दर्द के भय के कारण मल त्याग हेतु नहीं जाता है, पेट से सम्बन्धित रोग होने की दशा में (वमन, कार्सिनोमा,ओप्मकोलन,

पायलेरिक आऊटलेट आब्स टूक्शन) बड़े आपरेशन के बाद (चूंकि रोगी व्यक्ति कई-कई दिनों तक बिस्तर/पलंग पर लेटा रहता है तथा मुख द्वारा कुछ भी न लेने से मल खुश्क हो जाता है),

मानसिक विकारों द्वारा (एटोनेमिक नर्वस सिस्टम में परिवर्तन आने के कारण), अफीम का अधिक सेवन, रात्रि जागरण, विटामिन बी की कमी, निरन्तर क्लक तथा मानसिक कार्य करने वालों में यह रहना (कोष्ठबद्धता) एक आम रोग है।

विशेष

मल विसर्जन क्रिया तथा मल बन्ध के कारण-खुलासा रूप में-

मुख द्वारा भोजन में लिया गया आहार अन्न लगभग तीन घण्टे के समय में आमाशय से निकलकर 2 या 2½ घंटे में इलियम (Ileum) के निचले सिरे पर पहुँचता है तथा वहाँ पर कुछ समय रुका रहता है। तदुपरान्त किसी आहार-पान के करने से क्षुदान्त्र के इस निम्न भाग में एक ‘प्रेरकगति’

उठती है (जिसको आमाशय की चेष्टा के कारण उत्पन्न होने से Gastro Caecal Reflex) कहा जाता है। इसके उत्पन्न होने पर क्षुदान्त्र और बृहदान्त्र के बीच का द्वार (Ileocaecal Value) जो हर समय बन्द रहता है खुल जाता है और क्षुदान्त्र के निम्न भाग में इकट्ठा हुआ यह अन्न जब आगे Ceacum में खिसक जाता है।

इस प्रकार एकत्रित 1-1½ लीटर भोजन द्रव (जिसमें 90 % जल एवं बहुत थोड़ी मात्रा में खाण्ड, फैट, प्रोटीन और साल्ट्स की होती है) क्षुद्रान्त्र से वृहदन्त्र में जाता है। वृहदन्त्र में पहुँचने पर इस अन्न द्रव की गति बन्द हो जाती है। वहाँ एक ही स्थान पर यह घंटों रुका रहता है।

चढ़ते हुए वृहन्त्र में और आधा लेटे हुए वृहदन्त्र में इस भोजन द्रव का जल व भोजन के घुलनशील भाग विलीन हो जाते हैं। Pelvic Colon में मात्र भोजन द्रव का मलांश ही रह जाता है। दिन-रात में 3-4 बार के लगभग वृहदन्त्र में ‘प्रेरक गति’ (Peristalsis) पैदा होती है जो मात्र कुछ एक सेकेण्ड के लिए ही रहती है।

इनमें चढ़ती हुई आँत का मल-लेटी हुई आंत में और लेटी हुई आंत का मल उतरती हुई आंत में एक समूह में गति कर जाता है यानि वृहदन्त्र में Mass Peristalsis होता है। इस प्रकार खाया हुआ भोजन लगभग 16 घंटे के बाद पेल्विक कोलन (Pelvic Colon) के निचले सिरे तक पहुँच जाता है

और वहाँ पहुँचकर 5-6 घंटा तक रुका रहता है यानि सुबह-सबेरे/प्रात: समय और 12 बजे दोपहर का लिया हुआ आहार, द्रव्य 16 घंटे के समय के बाद अगले दिन सुबह 4 बजे तक Pelvic Colon में पहुँच जाता है।

सुबह 5 या 6 बजे सोकर उठने पर जब एक मनुष्य साधारण अथवा गर्म किया हुआ पानी पीता है अथवा गर्म चाय आदि पीता है या फिर केवल मल त्याग का संकल्प ही करता है तो आमाशय की गति के द्वारा अथवा मानसिक प्रेरणावश पेल्विक कोलन में एक प्रेरक गति उत्पन्न होने लगती है,

जिससे वहाँ उपस्थित मल आगे खिसक कर मलाशय में प्रवेश करने लगता है। उस समय यदि व्यक्ति निश्चिन्त हो अर्थात उसको काई कार्य अथवा चिन्ता व्याप्त न हो अर्थात यदि Sympathetic नाड़ियाँ उत्तेजित न हों तो मलाशय में आये हुए मल त्याग की संवेदना अथवा मल विसर्जन की हाजत/इच्छा होने लगती है।

इस पेट की गति के साथ सम्बन्धित होने से इसको Gastrocolic Reflex कहा जाता है। इस प्रकार जब मल के प्रवेश के कारण मलाशय की संज्ञावाहनियों में एक संवेदना सी प्रतीत होती है तो इसकी प्रतीति Spinal Cord के 2-4 Sacral Segments में विद्यमान मल विसर्जन केन्द्र (Defaecation Centre) में पहुँचती है

जहाँ से एक मल प्रेरक चेष्टा (Efferent Impulse) Sacral Para Sympathetics के द्वारा आती है जिससे मलाशय में ही नहीं वरन् लेटे हुए और (Colon) आँत के सम्पूर्ण निम्न भाग के माँस में प्रेरक गति उत्पन्न हो जाती है।

इसी नाड़ी समूह की उत्तेजना के कारण इस समय गुदा के अन्दर का द्वार (Anal Sphincter) खुल जाता है और वृहदन्त्र के समस्त निम्न भाग में संकोच होकर Descending Colon और Pelvic Colon का सम्पूर्ण मल एक वेग में शरीर से बाहर हो जाता है।

इसके साथ-साथ चढ़ती हुई आँत का भोजन द्रव-लेटी हुई बड़ी आँत में तथा लेटी हुई आँत का भोजन द्रव पेल्विक कोलन में खिसक जाता है। इस प्रकार ‘मल त्याग’ एक रिफ्लेक्स एक्ट (Reflex Act) है। यह रिफ्लेक्स विचार अथवा स्थिति पर भी निर्भर है। मल त्याग का समय होने से अथवा उसका विचार करने से या फिर चाय आदि किसी पेय के पीने से यह ‘रिफ्लैक्स’ पैदा हो जाता है।

मल विसर्जन के समय व्यक्ति अपने कोष्ठ की दीवार की मांसपेशियों एवं श्वास महापेशी (Diaphragm) पर दबाव भी डालता है यानि ये ऐच्छिक मांसपेशियाँ भी Colon की अनैच्छिक मांसपेशियों की उस समय मदद करती हैं। इस प्रकार मलाशय (रैक्टम Rectum) जो मल विसर्जन कर्म से पहले भी खाली था इसके बाद भी खाली हो जाता है। यह मल विसर्जन कर्म अथवा Reflex 24 या 48 घंटों में नियमित रूप से एक बार न हो तो कब्ज, मलबन्ध, मलावरोध आदि नामों से जाना जाता।

जब मनुष्य आलस्य वश अथवा किसी कार्यवश या लज्जावश या फिर मल त्याग के स्थान के अभाव वश मलाशय में होने वाली (उपरोक्त वर्णित) संवेदना अथवा हाजत या रिफ्लेक्स की अवहेलना करता है तो मल त्याग का वेग स्वतः ही शान्त हो जाता है।

तदुपरान्त वह फिर भोजनोपरान्त अथवा चाय आदि स्वल्पाहार के उपरान्त यह Gastro Colic Reflex पैदा हो जाता है और मनुष्य को मल त्याग हो जाता है अथवा फिर अगले दिन सुबह के समय अपने निश्चित समय पर मल त्याग का वेग होकर मलाशय में उपस्थित यह मल बाहर हो जाता है तथा मलाशय फिर स्वच्छ हो जाता है।

परन्तु यदि अन्य कार्यों की प्रधानता देते हुए बार-बार मल त्याग की इस हाजत अथवा Reflex की परवाह न की जाये यानि मलाशय में मल के आ जाने पर भी मल त्याग हेतु न जाया जाये तो धीरे-धीरे मलाशय में मल के प्रवेश से उत्पन्न होने वाली यह संवेदना अथवा बेचैनी की प्रति उत्तरोत्तर हल्की पड़ती जाती है

यानि मल प्रवेश से मलाशय की नाड़ियों में पैदा होने वाली उत्तेजना (Nervous Stimulation) मद्धिम तथा कुण्ठित होती जाती है। (Colic Reflex) घट जाता है। मलाशय में मल एकत्रित होकर खुश्क हो जाता है तथा मलाशय के लिए उसके शिथिल हो जाने से भी उसे बाहर फेंकना कुछ कठिन अथवा कष्ट से भरा होता है।

जो मलाशय की वातिक निर्बलता (Nervous Weakness) के कारण पैदा होता है। स्पष्ट है कि बालकों तथा युवाओं को घर-परिवार के सदस्यों द्वारा यह सिखाना चाहिए कि वे मल त्याग की प्रेरणा (Reflex) की अवहेलना कदापि न करें।

● Colonic Constipation अथवा वृहदन्त्र की भी गति में निर्बलता से उत्पन्न कब्ज आँत की दीवार में होने वाली अन्न प्रेरक गति (Peristalsis) दीवार में छाई हुई Auerbach’s Plexus की नाड़ियों द्वारा उत्पन्न होती है। Sympathetic और Parasympathetic नाड़ियाँ इस गति का नियमन करती हैं।

अन्न में उपस्थित विक्षोभक द्रव्य के द्वारा ये प्रेरक गति बढ़ती है। इसीलिए यदि आहार अति मृदु हो यथा चोकर रहित महीन मैदा या मशीन/मिल का साफ किया हुआ चावल, दूध, दही आदि का ही आहार किया जाये तो भी प्रेरक गति के मन्द होने से ‘मलबन्ध’ (Intestinal Stasis) का लक्षण रहता है।

आटा के चोकर में विटामिन बी1 होता है जो शरीर की नाड़ियों के लिए बल बर्धक होता है। यदि इस विटामिन की न्यूनता/कमी बनी रहे तो आँत की प्रेरक शक्ति भी मन्द हो जाती है जिससे मलबन्ध कब्ज हो जाता है। भोजन से यह हमें प्रतिदिन एक मिलीग्राम की मात्रा में प्राप्त होता है। अतः पालिश किये हुए अनाज भी मलबन्ध का कारण हो जाते हैं।

वनस्पति, शाक, फल आदि में (सेल्यूलोज Cellulose) का अंश अधिक होता है अतः उनका सेवन सर्वथा न किया जाये तो भी मलबन्ध रहता है। यकृत/जिगर (Liver) से निकलने वाला पित्त भी आँत में होने वाली प्रेरक गति (Peristalsis) का उत्तेजक होता है।

जो मनुष्य आसनशील होते हैं, व्यायाम-भ्रमण आदि नहीं करते उनके शरीर के अन्य मांसों के समान बड़ी आंत का मांस भी निर्बल हो जाता है जिससे व्यक्ति को मलबन्ध रहता है।

शरीर में मेदवृद्धि (मोटापा) हो जाने पर अथवा पाण्डु रोग (पीलिया) होने पर अथवा किसी तीव्र ज्वर के उपरान्त या क्षय रोग (T.B) में या मधुमेह (डायबिटीज) में और वृद्धावस्था के कारण भी बड़ी आंतों का निर्बल/कमजोर हो जाना स्वाभाविक ही है जिससे व्यक्ति को मलबन्ध रहता है। इसको Atonic अथवा Colonic Constipation कहा जाता है।

इस रोग (कब्ज) के लक्षण (Symptoms) नीचे लिखे हैं

 रोगी में कब्ज के लक्षण मुख्यतः नीचे लिखी बातों पर निर्भर करते हैं-

( A ) मल रुकने पर रैक्टम तथा कोलन में फैलाव इस रोगी में बहुत से परिवर्तन आ जाते हैं-

●क्षुधानाश/भूख न लगना।

● शरीर गिरा हुआ रहना/आलस्य।

● चक्कर आना।

●सिर भारी रहना।

●जी मिचलाना।

●खट्टी डकारें आना।

●गुदा द्वार से वायु/गैस का निकलना।

●पेट भारी रहना।

●मानसिक तनाव बने रहना।

●जीभ फटी हुई अथवा सफेद होना।

●किसी भी कार्य में मन नहीं लगना।

उपरोक्त समस्त लक्षण रैक्टम और कोलन-फैलाव के कारण आते हैं। यदि रोगी स्वाभाविक तरीके से अथवा बत्ती (सपोसिटरी) लगाने के बाद मल त्याग कर ले तो यह लक्षण दूर हो जाते हैं।

( B ) मल त्याग अथवा पेट साफ करने वाली औषधियों के अधिक सेवन करने से

विरेचक/दस्तावर औषधियों के सेवन से पानी की व सोडियम, पोटेशियम की कमी हो जाती है तथा मांसपेशियाँ कमजोर पड़ जाती हैं। अधिक एनिमा (Enema) के प्रयोग से भी आंतों तथा शरीर को हानि पहुँचती है।

( C ) कोलोनिक न्यूरोसिस

यह अधिकांशता बच्चों में कब्ज के बाद होता है। बच्चों पर अधिक सख्ती करने से यह चिन्ताग्रस्त हो जाते हैं तथा भयभीत रहते हैं। बहुत बार यदि बच्चा प्रातः समय मल त्याग न करे तो उनकी माता पेट साफ करने की (विरेचक/दस्तावर) औषधि दे देती है उससे बच्चे को उस औषधि की आदत पड़ जाती है।

अन्य प्रमुख लक्षण

●शौच/दस्त साफ न होना। मल (पाखाना) भूख तथा कम मात्रा में निकलना।

●भूख नष्ट हो जाना।

●पेट में भारीपन तथा मीठा-मीठा दर्द होना।

●रोगी के शरीर और सिर में भारीपन रहना।

●कभी-कभी मुख से दुर्गन्ध की अनुभूति होना।

●पेट में वायु/गैस बनना।

●रक्त पर दुष्प्रभाव होने के कारण रक्तभार (ब्लडप्रैशर) में वृद्धि।

●मुख का स्वाद/जायका खराब रहना।

●आलस्य, सुस्ती, अनिद्रा तथा ज्वर आदि लक्षणों का मिलना।

●कब्ज के दीर्घकालिक रोग से बवासीर (पाइल्स), गृध्रसी (सायटिका पेन) आदि रोगों की उत्पत्ति।

●किसी-किसी रोगी को चाय या सिगरेट का सेवन किये बिना मल त्याग न होना।

●रोगी के मल त्याग हेतु जाने पर भी (काफी देर तक मल त्याग हेतु बैठे रहने के बाद भी) मल त्याग की प्रवृत्ति न होना।

कब्ज की जटिलतायें (Complications of Constipation)

●मल द्वार का विदर (Anal Fissure)

●बवासीर (Piles)

●मूत्र आना रुक जाना (Retention of Urine)

●मल का बड़ी आँत और मल द्वार से चिपक जाना, बड़ी आँत में घाव/व्रण (अल्सर) (Colonic Ulcer )

●विरेचक बड़ी आँत (Cathartic Colon)

●शौच/दस्त पर नियन्त्रण न रहना (In continue of Bowel)

●ऑक्सीजन की कमी के कारण बड़ी आँत की सूजन।

●मल द्वार का नीचे खिसक जाना ( Prolapse of Rectum )

●कोलन सख्त होकर पाइप जैसा हो सकता है।

●लगातार मल त्याग में जोर लगाने से बवासीर, भगन्दर, इनग्वीनल हार्निया अधिकतर हो सकते हैं।

●कब्ज रोग से पीड़ित रोगी में स्वाभाविक स्फूर्ति नहीं रहती।

जाँच (Investigations)

●प्रोक्टोस्कोपी।

●सिग्मोइडोस्कोपी।

●बेरियम एनिमा।

● रोगी के गुदाद्वार में उंगली डालकर जांच(P/R) करने पर सख्त मल एकत्र हुआ मिलता है।

विशेषकब्ज (रोग) के मुख मूल कारण का पता लगाना चाहिए। उपरोक्त समस्त जांचों से बवासीर, फिशर संबंध में पता चल जाता है।

कब्ज का घरेलू उपाय (kabj ka gharelu upay)

दो गिलास पानी में दो चम्मच सौंफ डालकर उसको उबालें जब पानी आधा रह जाए तो उसमें दो चम्मच अरंडी का तेल डालकर उसको अच्छे से मिलाएं जब पानी गुनगुना हो जाए तब उसे जल्दी से पी जाना है। इस प्रयोग को हफ्ते में एक बार कर सकते हैं। बहुत प्रभावी नुस्खा है। इस को लेने के बाद हो सकता है कि दिन में तीन चार बार शौच के लिए जाना पड़े।

● रोज रात को दो चम्मच त्रिफला चूर्ण लेने से भी बहुत फायदा होता है। त्रिफला चूर्ण गर्म पानी के साथ ही लेना है।

● विधारा का चूर्ण 5-5 ग्राम की मात्रा में नियमित रूप से 2 से 3 माह तक निरंतर सेवन करते रहने से कब रोग मिट जाता है।

● त्रिफला चूर्ण 6 ग्राम को शहद में मिलाकर सेवन करने से तथा ऊपर से गर्म दूध पीने से कब्ज दूर हो जाता है।

● 30 ग्राम कैस्टर ऑयल को गर्म दूध में मिश्री डालकर सेवन करने से कब्ज मिटती है।

● 15 से 20 नग मुनक्का ढाई सौ मिली लीटर दूध और इतनी ही मात्रा में डालकर उबालें। जब पानी जल जाए और दूध शेष रह जाए तब मुनक्का खाकर यही दूध पीने से कब्ज में लाभ होता है।

● 100 एम एल टमाटर का रस प्रतिदिन पीना हितकर है।

● भोजन में अन्न को कम करके सब्जी और फलों की मात्रा बढ़ा देने से भी यह वह शांत हो जाता है।

● दिन में दो बार (सुबह शाम) गीली पट्टी को पेडू पर 30 30 मिनट में रखने से भी मल प्रेरक शक्ति बढ़ जाती है।

● नाश्ते से पूर्व दो नग बड़े पीले संतरों का रस पीना भी लाभकारी है।

● दो चम्मच इसबगोल रात को सोते समय एक कप दूध में डालकर प्रतिदिन सेवन करने से सुबह को दस्त साफ होता है।

● एक बड़ा गिलास गर्म दूध में एक से दो चम्मच शुद्ध देसी घी मिलाकर रात को सोते समय सेवन करने से सुबह दस्त साफ होता है।

● पके हुए बेल का शरबत पीने से या बेल के गूदे में सौंफ का पाउडर मिलाकर पीने से कब्ज दूर होता है। सीधा पका बेल खाएं तो और अच्छा।

● रात्रि में तांबे के बर्तन में रखा पानी प्रातः शौच जाने से पहले पीने से कब्ज दूर होता है।

घरेलू नुस्खे का प्रयोग क्यों करें?

घरेलू नुस्खे का प्रयोग सुरक्षित और प्रभावी माना जाता है। इस प्रयोग की खास बात यह है कि बिना चिकित्सक के भी आप घर पर अपनी समस्याओं का निदान खुद कर सकते हैं। इस औषधि को घर पर ही तैयार किया जा सकता है वह भी बहुत कम कीमतों में।

कब्ज के लिए खाए जाने वाले फल:

बेल

● अमरूद

अंगूर

संतरा

● पपीता

● अंजीर

कब्ज के लिए योगासन:

● मलासन

● पवनमुक्तासन

● सुप्त बुद्धकोणासन

● हलासन

● बालासन

● सुप्त मत्स्येन्द्रासन

यह सभी योगासन योग गुरु के देखरेख में ही करें। कब्ज के लिए बहुत ही प्रभावी योगासन है।

पथ्यापथ्य / सहायक उपचार:

● प्रातः समय जागकर नित्य ऊषापान (ठण्डा पानी पीना) और प्रातः भ्रमण (मॉर्निंग वाक् करना) तथा स्नान करना हितकर होता है।

● कब्ज में पका अमरूद, उबला गाजर, पपीता का सेवन, कम चिकनाई वाले आहार (यथा-गाय का दूध, पनीर, चोकर युक्त आटा की रोटी, मौसमी फल, दाल के स्थान पर हरी सब्जी (बथुआ, पालक आदि), आम, अंगूर, किशमिश, मुनक्का, खजूर, संतरा, नाशपाती एवं कागजी नींबू के रस का उपयोग करें।

● बासी भोजन, वात बर्द्धक भोजन, चिकना और तला हुआ आहार नहीं लेना चाहिए।

● सुपाच्य, हल्का (शीघ्र पाची) , सादा तथा पौष्टिक आहार ही लेना चाहिए।

● तीव्र औषधियों का अधिक आवश्यकता होने पर ही यदा-कदा उपयोग चाहिए। एनिमा का प्रयोग भी लाभकर नहीं है।

● कब्ज की चिकित्सा में स्नेहक औषधियाँ (Lubricants) विशेष महत्व रखती है।

● कब्ज के नवीनतम रोग में मात्र आहार-विहार और स्वास्थ्य के नियमों का पालन करने से ही रोग दूर हो जाता है किन्तु पुराने रोग में उचित आहार-विहार पालन के साथ ही औषधि चिकित्सा की भी आवश्यकता होती है।

● 8-10 गिलास द्रव पदार्थ (Fluids) प्रतिदिन आवश्यक।

● दिन में 2 बार (सुबह-शाम) नियमित रूप से शौच के लिए जाना अत्यन्त आवश्यक।

ध्यान देने योग्य बातें: जितने भी बताये गए घरेलु नुस्खे हैं सब को एक साथ प्रयोग नहीं करना है। किसी एक को ही प्रयोग करें। बेहतर परिणाम के लिए बताये गए योगासन और खान पान क

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें। नेचुरल वे क्योर इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है।

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