पर्यायवाची– बालातिसार, इन्फेंटाइल डायरिया।
रोग परिचय: (Bachchon ke diarrhea ka gharelu upay in hindi) जानने से पहले इस रोग के बारे में जानें। बच्चों को प्राय: दस्त (अतिसार) का रोग हो जाता है। इस रोग से पीड़ित बच्चे को पाखाना कई बार (प्रतिदिन 4 बार से अधिक), दुर्गन्धित, पतला तथा यदा हरे रंग का एवं आंव (म्यूकस) मिश्रित होता है। मल में अपच दही के कतरे भी दिखायी देते हैं। पेचिश (Dysentery) में मल (पाखाना) में आंव और रक्त दोनों ही मिश्रित रहते हैं। इस रोग से पीड़ित रोगी बच्चा कई बार पाखाना/मल त्याग करता है जो कि बहुत पतले भी हो सकते हैं तथा अनमें रक्त भी मिश्रित हो सकता है।
डायरिया रोग के मुख्य कारण:
• वाइरस (Virus), बैक्टीरिया (Bacteria) तथा प्रोटोजोआ, जिआर्डिएसिस/अमीबियासिस, हेल्मिंथियासिस।
•ओटाइटिस मीडिया, मेस्टाइटिस, मैनिन्जाइटिस तथा दाँत निकलने के कारण।
• भोजन सम्बन्धी कारण।
• दूध की बोतल तथा दूध को ठीक सें न उबलने से उसमें संक्रमण प्रवेश करता है।
रोग के मुख्य लक्षण:
• मां का दूध पीने वाले शिशुओं में अतिसार का रोग बहुत कम होता है।
साधारण दस्त–
• इस अवस्था में हल्का ज्वर, वमन (कय), पेट दर्द, पतले दस्त, दस्तों का रंग पोला, सफेद या हरा। फेन युक्त मल में से खट्टी दुर्गन्धयुक्त बदबू आना, मल के अधपचे पदार्थ आना, चिड़चिड़ापन, तथा अनिद्रा आदि के लक्षण प्रमुखता से मिलते हैं। दस्त दिन में 2 से 10 बार तक होते हैं। शारीरिक भार लगभग 10 % कम हो जाता है।
अधिक दस्त–
• तेज ज्वर, वमन, भूख न लगना, पेट दर्द एवं पेट में मरोड़, आंव और रक्त का मिश्रण होना। दस्तों की संख्या अधिक होना।
• रोगी बालक के शरीर में पानी की कमी तथा निर्जलीकरण के कारण त्वचा और होंठ सूख जाते हैं।
• नाड़ी क्षीण तथा हृदयगति तेज होना।
• मूत्र की मात्रा कम होना।
• फॉन्टानेल तथा नेत्र भीतर की ओर धंस जाते हैं।
• शारीरिक भार (वजन) 15-25 % तक कम हो जाता है।
डाइटेटिक्स डायरिया में
• अधिक चर्बी के कारण उत्पन्न अतिसार/दस्त (मल) पतला, दही के थक्कों के सदृश गन्धयुक्त होता है।
• कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से मल पतला, हरे रंग का झाग युक्त तथा खट्टास युक्त होता है।
• दस्तों का आरम्भ पतले अतिसार की भांति हरे रंग युक्त, साथ ही मल दही के थक्के आंव (म्यूकस) के साथ आता है। दस्तों की संख्या 2 से 10 तक हो सकता है। इसके अतिरिक्त रोगी बालक को थोड़ा ज्वर भी होता है।
• गम्भीर रोग में तीव्रता पूर्वक ‘निर्जलीकरण’ (डिहाइड्रेशन) होता है।
पानी की कमी (Symptoms Of Dehydration)
• प्यास लगना तथा मुख/जीभ सूखना।
• आँखें भीतर को (खड्डों में) धंसी हुई।
• मूत्र कम आना अथवा बिल्कुल न आना।
• भीतर धंसे हुए फॉन्टानेल।
• हाथ-पैर ठण्डे होना।
• नाड़ी तेज तथा कमजोर होना।
पानी की कमी के लक्षण नीचे लिखे प्रकार के भी हो सकते हैं
1. साधारण पानी की कमी (Mild Dehydration)
• जब रोगी बालक को दस्त थोड़े पतले होते हैं और उसको मुख द्वारा पानी देना बन्द कर दिया जाता है प्राय: इस भय से कि बच्चे को कहीं दस्त बढ़ न जाये अथवा बालक वमन (कय) के कारण मुख द्वारा पानी नहीं ले पाता है। इससे बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है तथा रोता रहता है। उसको प्यास अधिक लगती है तथा वह कमजोरी अनुभव करता है।
• प्राय: माताऐं या दादी मां आदि ऐसे रोगी बच्चे को खाना, पानी, दूध आदि देना बिल्कुल बन्द कर देती है जो कि एक दम गलत है। बच्चों को दस्त के समय खाना, दूध, पानी आदि देते रहने से आरम्भ में दस्त थोड़ा बढ़ सकता है किन्तु यह बच्चों की रोग से लड़ने की आन्तरिक शक्ति को बनाये रखता है तथा बच्चा दस्त की समस्या/रोग से शीघ्र ही निरोग होता है।
2. पानी की मध्यम कमी (Moderate Dehydration)
• दस्त अधिक बढ़ने पर अथवा बच्चे को दस्तों के साथ ही साथ वमन (कय/उल्टी) बनी रहने से शरीर में पानी की कमी बढ़ जाती है। ऐसे बच्चों में आंखें खड्डों में धंसी नजर आती है होंठ व जीभ सूखे-सूखे दिखाई देते हैं तथा चमड़ी (Skin) को हाथों से चिकोटी भर कर छोड़ने के बाद वापस अपने स्थान पर जाने में समय अधिक लगता है। छोटे बच्चों के सिर में तालु दबा हुआ दिखायी देता है। मूत्र बनना कम हो जाता है।
3. पानी की अत्याधिक कमी (Severe Dehydration)
• जब रोगी बालक को दस्त बिल्कुल ही पानी की सदृश होते हैं तथा जल्द-जल्द और अधिक मात्रा में होते हैं तो पानी की अत्याधिक कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में बालक एकदम निढाल हो जाता है। यहाँ तक कि वह बेहोशी की दशा में भी जा सकता है पत्र बनना या तो बिल्कुल ही बन्द हो जाता है अथवा फिर बहुत ही कम मात्रा में होता है। हाथ-पैर एक दम ठण्डे/शीतल पड़ जाते हैं। नाड़ी बहुत तेज चलने लगती है। इस अवस्था में बच्चे के प्राणों/जान का भी खतरा रहता है।
विशेष (पानी की कमी का निवारण)
• स्मरण रहे कि बच्चों में ‘दस्त’ प्रायः खतरनाक नहीं होते हैं किन्तु दस्त के साथ ही साथ जो पानी की कमी हो जाती है वह बच्चों के लिए चिन्ता का कारण अवश्य बनती है। क्योंकि यह खतरनाक है और जानलेवा भी हो सकती है। इस समस्या से बचने के लिए हमें ऐसे बच्चों में पानी की कमी को पूरा अत्यावश्यक हो जाता है। यह कमी या तो मुख द्वारा (ओरल) घोल पिलाकर अथवा फिर शिरा (नस) में बोतल चढ़ाकर पूरी की जा सकती है।
ऐसे बच्चे जिनमें पानी की अत्याधिक कमी हो जाती है अथवा फिर वमन (कय/उल्टी) अधिक होती है उन बच्चों को किसी ‘बाल रोग विशेषज्ञ’ चिकित्सक के परामर्श से अस्पताल में भर्ती कराकर शिरा/नस द्वारा पानी और औषधियाँ दी जाती है किन्तु जिन बच्चों में दस्त कम हैं पानी की साधारण अथवा मध्यम कमी तथा वमन/उल्टियां न ही हो रही हों ऐसे बच्चों को मुंह से पानी घर में बनाये हुए घोल तथा ओ० आर० एस० (ORS) दिया जाना चाहिए।
ओ० आर० एस० (Oral Rehydration Solution)
• O.R.S का पतला ओरल रिहाइड्रेशन सोल्यूशसन है जो दवा निर्मित करने वाली कई कम्पनियां विभिन्न पेटेण्ट व्यवसायिक नामों से बाजार में उपलब्ध करा रही हैं। यह पैकेट में बन्द पाउडर के रूप में होता है जो पानी में मिला दिया जाता है। इसे स्वतः घर में भी पानी में नमक, चीनी, मीठा सोडा तथा कागजी नीबू के रस की कुछ बूंदे मिलाकर बनाया जाता है।
• स्मरण रहे कि ओ० आर० एस० दस्त को रोकने में कोई सहायता नहीं करता है किन्तु यह दस्त के कारण से उत्पन्न हुई पानी की कमी को दूर करने में सहायता करता है।
W.H.O का O.R.S
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O वर्ल्ड हैल्थ आर्गनाइजेशन) के ओ० आर० एस० पैकेट में सोडियम, पोटेशियम बाईकार्बोनेट्स और ग्लूकोज का मिश्रण होता है। इसमें ‘सोडियम’ की मात्रा अधिक होती है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन इसका सुझाया गया मिश्रण है तथा अपने भारत वर्ष जैसे गर्म देशों के लिए उचित भी है
क्योंकि गर्मी में पसीना के मार्ग/रास्ते से सोडियम शरीर से बाहर निकल जाता है तथा दस्तों में भी इस लिए अधिक सोडियम वाला पानी यानि डब्ल्यू० एच० ओ० का ओ० आर० एस० हमारे देश की जलवायु के अनुसार एक उचित मिश्रण है। अतः इसे प्रयोग में लाना चाहिए। यह राजकीय प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों पर मुफ्त वितरित किया जाता है। यह वैज्ञानिक रूप से तैयार किया हुआ सही मिश्रण होता है जो अधिक प्रभावकारी (असरदार) है।
घर पर स्वयं पानी का घोल कैसे बनायें?
यदि ओ० आर० एस० का पैकेट सुलभ/प्राप्य न हो तो घर में ही नमक-चीनी का घोल बनाकर रोगी को सेवन कराया जा सकता है। इसे बनाने हेतु 100 मिली० साफ स्वच्छ पीने के पानी में एक छोटा (चाय वाला) चम्मच चीनी और एक चुटकी रसोई में काम आने वाला नमक तथा कुछ बूंदे कागजी नींबू के रस की मिलाकर दिया जा सकता है। यदि नींबू न हो तो मात्र चीनी और नमक का ही घोल बनाकर दिया जा सकता है।
बच्चों में दस्त के लिए घरेलू उपाय:
• बच्चों के अतिसारों में ‘अतीस’ घिसकर देना लाभकारी है।
• ईसबगोल के बीज 60 मिली० पानी में भिगोकर 1 से 2 घंटे तक छोड़ दें। फिर इसको मल-छानकर इसका गाढ़ा पानी अलग करके थोड़ी सी चीनी मिलाकर उसमें से 1 छोटा चम्मच दिन में 2-3 बार सेवन करायें। यह प्रयोग बार-बार दस्त आते रहने और पेचिश से बच्चे की कमजोरी, अन्तड़ियों में मरोड़, सूजन, घावों, व दस्त आने में लाभप्रद है।
• जामुन का शर्बत सेवन कराने से अतिसार दूर हो जाता है।
• सोंठ व अजवायन अथवा अजवायन और अदरक पीसकर सेवन करने से अतिसार में तुरन्त लाभ होता है।
• अनार के पत्ते पानी में पीस कर पिलाने से अतिसार ठीक हो जाता है।
• कच्चे बेर खिलाने से अतिसर मिट जाता है।
• बड़ का दूध बच्चे / रोगी की नाभि में भरने तथा आस-पास लगाने से अतिसार ठीक हो जाता है।
• अमरूद में मिश्री मिलाकर खाने से अतिसार में लाभ होता है।
• दही में तालमखाने मिलाकार खाने से अतिसार में लाभ होता है।
• बबूल के पत्तों को पीस कर पीने से अतिसार में लाभ होता है।
• केले की फली में शक्कर लगाकर खाने से प्रवाहिका में लाभ होता है।
• तुलसी के पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर शाम को पीने से खूनी पेचिश तथा प्रवाहिका में लाभ होता है।
• 50 ग्राम चावलों को 250 मिली० पानी में भिगो दें। 2 घण्टे के बाद इस पानी में मिश्री मिलाकर पीने से खूनी दस्त में लाभ होता है।
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें। नेचुरल वे क्योर इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है।
FAQ
3 thoughts on “बच्चों के डायरिया का घरेलू उपाय | Bachchon ke diarrhea ka gharelu upay in hindi”